अष्टावक्र गीता-दोहे -16
*अष्टावक्र गीता*-16
हर्ष-शोक-इच्छा-ग्रहण,त्याग-क्रोध हैं शूल।
ये, कह अष्टावक्र जी,जग-बंधन के मूल।।
हर्ष-शोक-इच्छा-ग्रहण,त्याग-क्रोध-मन हीन।
रहे मुक्त बंधन सदा,निर्मल मन शालीन।।
रहे सदा बंधन बँधा, दृश्यमान-आसक्त।
बंधन-मुक्त अनिच्छ मन,कभी न माया-भक्त।।
'मैं' या 'मेरा' भाव को,बस जग-बंधन जान।
इसी भाव को त्याग कर,होते मुक्त सुजान।।
यह है करना वह नहीं,करो न तुम यह मोल।
हो विरक्त तज भाव यह,पाओ सुख अनमोल।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
02-Mar-2024 11:36 AM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
01-Mar-2024 11:30 PM
शानदार
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hema mohril
29-Feb-2024 08:17 PM
V nice
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